संग रबि सोच्ठु दिनक उ रात नि मिलल


गजल कबु दुख कबु सुख उ बात नि मिलल संग रबि सोच्ठु दिनक उ रात नि मिलल अक्के चुटि बाटेमफे रिसैठी बहुत ढ्यार कसिक सुफ्लैना महि उ आत नि मिलल हेर्टि सुहावान जोर्या बा कठै सबजाने छोटभारी कैके सुत्ना उ खात नि मिलल कहाँ सम सम्झिना हो यहाँ नि बुझ्नम टुँ पापी मै धर्मि कन उ बात नि मिलल न धन सम्पति न उमेर कुछु नि हेर्नु हुकार पर्नु गरिब हुका संग खैना भात नि मिलल

बिग्रल चुक्कु राम कुमार डंगौरा थारु बोक्लौहुवा ,कैलाली


साभार

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